सोमवार, 19 जनवरी 2009

PATHIK


१ पथिक अकेला
पथिक
अकेला
पावस में
मापता
आनंत को
शीघ्रता से
अंतरतम में
उद्विघ्नता
छट्पटाहट
निकल भागने की
निसिथ अन्धकार से
चलता गया
लगातार और लगातार
पर सुन न सका
पदचाप
घोर अन्धकार के.

ये कविता महात्मा गाँधी के ऊपर लिखी हुयी है की कैसे उन्होंने संघर्ष किया और किस तरह अंत तक लड़ते रहे।

समीर वत्स
law school bhu
sameervatsa@in.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

plz give yuor view here