समुद्र ने हमेसा हमें आकार्सित किया है नई खोज और नई चुनौतिया लिए और हम हमेसा जीते है ,समुद्र ने हमें फ़िर ललकारा लेकिन सुंनामी के रूप में नही आतंकबाद के रूप में मै अभी दांडी में हूँ महात्मा गाँधी के कर्म भूमि पर शान्ति के मार्ग पर लेकिन अब शान्ति से नही शक्ति से काम चलेगा क्यूंकि अंगरेज शिक्षित थे अनपढ़ नही और अब हमारा सामना अनपढ़ लोगो से है जिनका मस्तिस्क अँधा है आँखे खुली है तबाही मचाने और देखने के लिए ....................
bahut aacha sahin ja rahe ho guru.
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