पतझड़
पतझड़
क्यों न आया
तू मेरे भी जीवन में
गिर जाते पात मेरे
पुराने सूखे और कुछ नए भी
निकलती कोंपले,
नई पत्तियां और शाखाएं भी .
जीवन चला जा रहा है
लगातार निरंतर एक सा
क्या नही चाहिए
परिवर्तन,
पतझड़ और झंझावात
वृक्षों की तरह
हमारे जीवन में भी ?
तत्पर हूँ तुम्हारे स्वागत के लिए
अगले पतझड़ में भी पहले की तरह
तुम आना मेरे यहाँ भी ,
स्वागत है तुम्हारा
अतिथि की भांति
निसंकोच
सदैव
पतझड़
क्यों न आया
तू मेरे भी जीवन में
गिर जाते पात मेरे
पुराने सूखे और कुछ नए भी
निकलती कोंपले,
नई पत्तियां और शाखाएं भी .
जीवन चला जा रहा है
लगातार निरंतर एक सा
क्या नही चाहिए
परिवर्तन,
पतझड़ और झंझावात
वृक्षों की तरह
हमारे जीवन में भी ?
तत्पर हूँ तुम्हारे स्वागत के लिए
अगले पतझड़ में भी पहले की तरह
तुम आना मेरे यहाँ भी ,
स्वागत है तुम्हारा
अतिथि की भांति
निसंकोच
सदैव
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